कपास की जैविक खेती | कपास में जैविक पदार्थो के उपयोग | किसानों के लिए बीटी कपास बिजाई की तकनीकी सलाह | बीटी कपास में जैविक कार्बन प्रबन्ध | Technical Advisory for Farmers | SOIL ORGANIC CARBON MANAGEMENT CENTRE
कपास की उन्नत खेती उत्पादन तकनीक : जिले (हनुमानगढ) की जमीनों की उर्वरा शक्ति, बीटी बीज की उत्पादन देने की क्षमता, पानी की उपलब्धता व गुणवता तथा किसानों (Farmers) की मेहनत आदि विभिन्न संसाधनों को देखते हुए बीटी कपास का औसत उत्पादन 8-10 कुंटल प्रति बीघा लिया जा सकता है। परन्तु वास्तविक औसत उत्पादकता 6 से 6.5 क्विंटल प्रति बीघा के बीच ही है। कम उत्पादकता के कारण किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
कम उत्पादकता के मुख्य रूप से दो ही कारण है – एक जमीनों का जैविक कार्बन कम होना तथा दूसरा पोषक तत्व प्रबन्ध ठीक प्रकार से नहीं करना।
किसान जैविक पदार्थो का उपयोग तथा पोषक तत्वों का ठीक प्रकार से प्रबन्ध करके औसतन 2-3 कुंटल प्रति बीघा उपज बढ़ाने के साथ-साथ फसल को शाॅट मारने से भी बचा सकते है।
किसान जिस सोच के साथ यूरिया डी.ए.पी. तथा अन्य उर्वरकों पर पैसा खर्च करते है, ठीक वही सोच जैविक पदार्थो के लिए अपनानी होगी। किसानों को यह समझना होगा कि जैविक पदार्थो के प्रयोग के बिना बीटी कपास (Bt cotton) का अच्छा उत्पादन नहीं लिया जा सकता तथा शाॅट की समस्या का स्थाई हल बाजार में नही है बल्की किसान के खुद के पास ही है।
मृदा में जैविक कार्बन
हनुमानगढ़ जिले की जमीनों का जैविक कार्बन (Soil organic carbon) सन् 1960 से 1970 के बीच 0.50 प्रतिशत से घटकर वर्तमान में 0.30 प्रतिशत रह गया है, अर्थात 100 किलो मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा 500 ग्राम से घटकर 300 ग्राम या इससे भी कम हो गई है।

जिले की 50 प्रतिशत जमीनों का जैविक कार्बन स्तर 0.25 प्रतिशत से भी कम रह गया है। जैविक कार्बन घटने के मुख्य रूप से तीन कारण है:-
- गत 50 वर्षाे से सघन खेती करने के कारण जैविक कार्बन कम हुआ है।
- जिस मात्रा में फसलें जैविक कार्बन ले रही है, उसकी पूर्ति करने के लिए उतनी मात्रा में जैविक पदार्थ जमीन में नहीं मिलाये जा रहे है।
- यूरिया उर्वरक का आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपयोग करने से मृदा जैविक कार्बन में गिरावट आने का बहुत बड़ा कारण है।
मृदा जैविक कार्बन की बीटी कपास उत्पादन में भूमिका
Role of soil organic carbon in Bt cotton production : पौधो का 96 प्रतिशत भाग कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से बना होता है, जिसमें 45 प्रतिशत भाग अकेले कार्बन का होता है, शेष 4 प्रतिशत भाग नाईट्रोजन, फाॅस्फोरस, पोटाश, सल्फर, कैल्शियम, मैगनिशियम व जिंक व अन्य सुक्ष्म पोषक तत्वों का बना होता है। जिन पोषक तत्वों की जमीन में कमी होती है, उनको बाहर से उर्वरकों के रूप में दिया जाता है।

बीटी कपास में 6 पोषक तत्वों की जमीन द्वारा आवश्यकता के अनुरूप पूर्ति नहीं होती है, जिसके कारण इनको उर्वरकों के रूप में बाहर से दिया जाता है। ये 6 पोषक तत्व नाइट्रोजन, फाॅस्फोरस, पोटाश, सल्फर, मैगनिशियम तथा जिंक है।
उर्वरक के सही उपयोग के बावजूद उत्पादन क्यों नहीं बढ़ता?
अब सवाल यह उठता है कि ये समस्त उर्वरक सही मात्रा में सही समय पर तथा सही विधि से देने के बावजूद भी बीटी कपास का बीज की क्षमता के अनुसार 8-10 कुंटल प्रति बीघा उपज क्यों नहीं मिलती है अथवा बीटी कपास की फसल सितम्बर के माह में शॅाट क्यों मारती है।
इसका एक ही मुख्य कारण है कि ये समस्त पोषक तत्व उर्वरकों के रूप में देने के बावजूद पौधों को उपलब्ध नहीं होते है क्योंकि ये पोषक तत्व पानी के साथ घोल के रूप में जड़ो के माध्यम से मृदा जैविक कार्बन के द्वारा पौधों को सप्लाई किये जाते है।
जमीन में जैविक कार्बन की कमी के कारण उर्वरको जैसे यूरिया, डी.ए.पी., सुपर, जिंक सल्फटे आदि द्वारा दिये जाने वाले पोषक तत्व पौधों को उपलब्ध नहीं होते है। सितम्बर माह में टिण्डो के विकास तथा उनमें रूई (कपास) के निर्माण हेतु पौधों की पोषक तत्वों की मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। यदि मांग के अनुरूप पोषक तत्वों की सप्लाई नहीं होगी तो या तो फसल शॅाट मारेगी अथवा शाॅट नहीं भी मारेगी तो भी उपज में कमी अवश्य आयेगी।
अतः इस बात को इस प्रकार समझा जा सकता है कि जिस प्रकार बिना रोटी खाये खाली पेट ताकत की दवाई काम नहीं करती है ठीक उसी प्रकार जमीन में बिना जैविक पदार्थ मिलाये रसायनिक उर्वरको द्वारा दिये जाने वाले पोषक तत्व पौधों को उपलब्ध नहीं होते है।
ऐसे करें कपास की जैविक खेती की तैयारी 2021
Organic Farming of Cotton : कृषको को बीटी कपास की बिजाई से पूर्व ही जैविक पदार्थों का प्रबन्ध कर लेना चाहिए। विभिन्न जैविक पदार्थो तथा प्रति बीघा उपयोग की जाने वाली मात्रा निम्न प्रकार है:-
- गोबर की खाद:-अच्छी सडी-गली 25 कुंटल गोबर की खाद प्रति बीघा की दर से उपयोग करे। ध्यान रहे कि गोबर की खाद का अधिक मात्रा में उपयोग करने से बीटी कपास के पौधों का जमाव ठीक से नहीं होता है।
अथवा - फसल अवशेष:- गेहूं व जौ की तुडी, चने का गुणा/नीरा, सरसों की पलु, धान की पाराली की कुतर में कोई एक फसल अवशेष 12 कुंटल प्रति बीघा की दर से बिजाई से पूर्व जुताई करके जमीन में मिलावें। सुखे जैविक पदार्थ जमीन में मिलाने की स्थिति में बीटी कपास की बिजाई से पूर्व 15 किलो यूरिया प्रतिबीघा की दर से छिंटा अवश्य लगावें । अथवा
- वर्मी कम्पोस्ट:- 12 क्विंटल प्रति बीघा बिजाई से पूर्व जमीन में मिलावें।
अथवा - सीटी कम्पोस्ट:- 10 कुंटल प्रति बीघा की दर से बिजाई से पूर्व जमीन में मिलावें। सीटी कम्पोस्ट का बाजार में 50 किलो का कट्टा 150 से 175 रूपये में मिलता है। इसका निर्माण कृभको तथा एन.एफ. एल. यूरिया बनाने वाली कम्पनियों के द्वारा किया जाता है ।

जानकारी स्त्रोत: किसान भाइयो यहाँ प्रकाशित की गई जानकारी “मृदा जैविक कार्बन प्रबन्ध केंद्र , हनुमानगढ़ जक्शन ” द्वारा प्रकाशित पीडीएफ फाइल से ली गई है .
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विशेष निवेदन:
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