Nano Urea Reduced Grain Yield: पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) के शोधकर्ताओं ने हाल ही में नैनो-यूरिया के फसल उत्पादन पर प्रभाव का विश्लेषण किया है। इस अध्ययन में पाया गया कि नैनो-यूरिया के लगातार इस्तेमाल से धान और गेहूं की पैदावार में कमी आ सकती है। यह निष्कर्ष चिंताजनक है, क्योंकि धान और गेहूं भारत के कुल खाद्यान्न उत्पादन का लगभग 70% हिस्सा हैं।
नैनो-यूरिया के प्रभाव:
शोधकर्ताओं के अनुसार, नैनो-यूरिया के उपयोग से धान के दानों में 35% और गेहूं के दानों में 24% प्रोटीन की मात्रा में कमी आई है। इसके अलावा, फसलों में नाइट्रोजन की कमी भी देखी गई, जिससे उत्पादन प्रभावित हुआ। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि नाइट्रोजन-प्रबंधन के गलत तरीके अपनाने से फसलों की गुणवत्ता और उत्पादकता दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

सरकार की नीति और किसानों पर प्रभाव:
भारत सरकार ने नैनो-यूरिया को किसानों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। हालांकि, यह अध्ययन बताता है कि नैनो-यूरिया के उपयोग से किसानों की आजीविका को नुकसान पहुंच सकता है। शोधकर्ताओं ने इस तकनीक के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
यूरिया की मांग और सरकारी सब्सिडी:
भारत में यूरिया कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण उर्वरक है। हर साल देश को लगभग 350 लाख टन यूरिया की आवश्यकता होती है, जिसमें से 40 लाख टन आयात किया जाता है। सरकार यूरिया पर भारी सब्सिडी भी देती है। उदाहरण के लिए, 45 किलो यूरिया के बैग की वास्तविक लागत 3,000 रुपये है, लेकिन इसे किसानों को केवल 242 रुपये में बेचा जाता है। 2023-24 में सरकार ने यूरिया पर 1.3 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
नैनो-यूरिया क्या है?
नैनो-यूरिया एक तरल उर्वरक है, जिसमें 500 मिलीलीटर घोल में 4% नाइट्रोजन होता है। यह पारंपरिक यूरिया के बैग का केवल एक हजारवां हिस्सा है, लेकिन इसके बड़े लाभ का दावा किया जाता है। इफको के अनुसार, नैनो-यूरिया का एक छिड़काव 52 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की जगह ले सकता है। हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके प्रभावों को लेकर अभी और अध्ययन की आवश्यकता है।
शोध के निष्कर्ष:
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ मृदा रसायनज्ञ डॉ. राजीव सिक्का के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में पाया गया कि नैनो-यूरिया के उपयोग से पौधों की जड़ों की लंबाई और शुष्क वजन में कमी आई। साथ ही, पौधों में पोषक तत्वों की कमी भी देखी गई। डॉ. सिक्का ने बताया कि नैनो-यूरिया के नए फॉर्मूले भी पैदावार बढ़ाने में असफल रहे हैं।