PBG 10- पंजाब के खेतों में अब एक ऐसी चने की किस्म उगेगी, जो न सिर्फ आपकी सेहत बल्कि किसान को आर्थिक रूप से भी मजबूत करेगी। पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू) ने Chickpea Farming को बदलने वाली नई किस्म ‘पीबीजी-10’ तैयार की है, जिसमें 21.63 प्रतिशत प्रोटीन है और यह पारंपरिक किस्मों से दोगुना उत्पादन देने की ताकत रखती है। यानी अब पंजाब के किसान अपने खेत से दोगनी कमाई की उम्मीद कर सकते है ।
इस किस्म की अन्य खासियत बात करें तो यह किस्म उन बीमारियों से लड़ने की ताक़त रखती है, जिनकी वजह से पंजाब में चने की खेती लगभग समाप्त हो गई थी। एक समय में राज्य में 2.5 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में चना बोया जाता था, लेकिन चाननी रोग ने इसे तबाह कर दिया। अब 12 साल की रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान निकाला है।
12 साल की मेहनत का नतीजा
पीएयू के प्लांट ब्रीडिंग और जेनेटिक्स विभाग ने इंटरनेशनल क्राप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फार द सेमी एरिड ट्रापिक्स (आइसीआरआइसैट), हैदराबाद के साथ मिलकर PBG-10 किस्म को विकसित किया। इस परियोजना में डॉ. शायला बिन्द्रा, डॉ. सर्बजीत सिंह, डॉ. इंद्रजीत सिंह सहित गुरइकबाल सिंह, हरप्रीत कौर, उपासना रानी, रविंदर सिंह, गौरव कुमार तगगड़, पूनम शर्मा और हरप्रीत कौर ओबराय जैसे वैज्ञानिकों की टीम लगी रही। कई सदस्य अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, लेकिन उनकी मेहनत का असर अब पंजाब के खेतों में दिखेगा।
फील्ड ट्रायल के दौरान यह किस्म हर मोर्चे पर सफल रही। इसकी औसत उपज प्रति एकड़ 8.6 क्विंटल रिकॉर्ड की गई, जो कि राज्य की मौजूदा किस्मों से लगभग दोगुनी है। यानी जहाँ पहले एक एकड़ से 4-4.5 क्विंटल चना मिलता था, वहीं अब 8.6 क्विंटल तक पैदा हो सकता है। यह सीधे तौर पर किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी का मतलब रखता है।
PBG-10 किस्म-प्रोटीन से लेकर दानों का साइज़, सबसे बेहतर
आज के समय में जब लोग प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की तरफ बढ़ रहे हैं, पीबीजी-10 किस्म इस मांग को पूरी करती है। इसमें 21.63 प्रतिशत प्रोटीन है, जबकि पारंपरिक किस्मों में यह 19-20 प्रतिशत ही होता है। यानी हर दाना पोषण में श्रेष्ठ है।
लेकिन केवल पोषण ही नहीं, इसके दाने का साइज़ भी काफी बड़ा है। 100 दानों का वजन 25.9 ग्राम है, जबकि पुरानी किस्मों में यह महज 14-15 ग्राम ही होता था। बड़े दाने का मतलब बेहतर बाजार दर और किसानों को ज्यादा मुनाफा। [High Protein Crop] के तौर पर यह किस्म स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक लाभ भी देगी।
किसानों की सबसे बड़ी चिंता खत्म
डॉ. शायला बिन्द्रा बताती हैं कि चने की सबसे बड़ी समस्या चाननी रोग रही है। यह बीमारी सर्दियों में धुंध, बादल और लगातार नमी की स्थिति में तेजी से फैलती है। इसकी वजह से पंजाब में चने की खेती क्षेत्र तेजी से घटता गया। लेकिन पीबीजी-10 इस समस्या से लड़ने में सक्षम है।
इस किस्म में चाननी रोग के अलावा भूरा साड़ा और उखेड़ा जैसी गंभीर बीमारियों के प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता पाई गई है। यानी अब किसानों को बीमारियों से होने वाले नुकसान की चिंता कम होगी। Disease Resistant Variety के तौर पर यह किस्म Sustainable Agriculture की दिशा में एक बड़ा कदम है।
मशीन से कटाई, खर्च में बचत
पंजाब में मजदूरी की बढ़ती लागत एक बड़ी चुनौती है। पारंपरिक चने की किस्मों में पौधे झुक जाते थे या जमीन पर फैल जाते थे, जिससे कटाई के लिए ज्यादा मजदूर चाहिए होते थे। लेकिन पीबीजी-10 के पौधे सीधे और मजबूत हैं।
इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि हार्वेस्टर जैसी मशीनों से आसानी से कटाई की जा सकती है। इससे किसान मजदूरों पर निर्भरता कम कर सकते हैं, कटाई की गति बढ़ा सकते हैं और लागत में काफी बचत कर सकते हैं। Farm Mechanization के इस दौर में यह फीचर किसानों के लिए वरदान साबित होगा।
मिट्टी की सेहत के लिए भी वरदान
चने की जड़ों पर राइजोबियम बैक्टीरिया द्वारा नोड्यूल्स बनते हैं, जो मिट्टी में प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन फिक्स करते हैं। इससे न सिर्फ अगली फसल को खाद मिलने में मदद मिलती है, बल्कि रासायनिक उर्वरकों की जरूरत भी घटती है। जबकि कई क्षेत्रों में मिट्टी की उर्वरा शक्ति घटने की समस्या बढ़ रही है, ऐसे में पीबीजी-10 जैसी किस्में कृषि संतुलन और पर्यावरण संरक्षण दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
इस तरह यह किस्म सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि पूरी खेती प्रणाली को सुधारने का जरिया बन सकती है। Crop Diversification के लिए भी यह एक बेहतर विकल्प है, जिससे किसान गेहूं-धान के चक्र से बाहर निकल सकें।
कब और कैसे करें बिजाई
किसान भाइयों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी यह है कि इस किस्म की बिजाई 25 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच करें तो करीब 150 दिनों में फसल तैयार हो जाती है। पानी की कम जरूरत के कारण यह सिंचाई संसाधनों पर दबाव वाले इलाकों के लिए भी उपयुक्त है। इसका मतलब साफ है – कम पानी, कम खर्च और ज्यादा फायदा।
पंजाब में [PAU University] की इस खोज से न सिर्फ किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि पोषण सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण भी मजबूत होगा। Agricultural Technology के क्षेत्र में यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है जिसका लाभ अब सीधे खेतों तक पहुंचेगा।








