Organic Okra Farming (Bhindi/Lady Finger): भिंडी की जैविक खेती वर्तमान की आवश्यकता है, क्योंकि भिंडी एक वर्षीय शाकीय पौधा है, जो देश के प्राय: सभी राज्यों में उगाया जाता है। भिंडी में कीड़ों व रोगों का प्रकोप अधिक होता है। जिसका नियंत्रण रासायनिक विधि से करने से दवा का असर स्वास्थ्य पर पड़ता है। जिससे लोग रोगों से ग्रसित हो जाते हैं। इसलिए भिंडी की खेती जैविक विधि से करना आवश्यक है।
भारत में भी भिंडी की जैविक खेती (Organic Farming) का प्रचलन शुरू हो चुका है। इसका अपरिपक्व फल सब्जी बनाने के काम में आता है। तने और जड़ों का रस, ईख के रस को साफ करने के काम आता है।
What is the benefits of eating lady finger in Hindi?
भिंडी के फलों में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व ( प्रोटीन 1.9 ग्राम, रेशा 1.2 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 6.4 ग्राम, विटामिन ए 88, आई यू, विटामिन B, विटामिन C तथा लवण) प्रति 100 ग्राम में पाए जाते हैं। पेचिस के रोगियों के लिए इसका सूप लाभदायक है तथा ज्वर तथा जननांगों के रोगों में भी यह गुणकारी होती है।
Bhindi ki Jaivik Kheti Kaise Kare
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भिंडी की जैविक खेती हेतु जलवायु
भिण्डी के लिए उष्ण और नम जलवायु की जरूरत होती है। इसके बीज 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड पर अच्छे लगते हैं। तापक्रम 17 डिग्री सेल्सियस से कम होने पर अंकुरण नहीं होता। गर्मी में 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर फूलों के गिरने की समस्या आ जाती है। जिसे उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है।
भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
यदि आप भी भिंडी की खेती करना चाहते हैं तो जानकारी के लिए आपको बता दें कि अच्छी जल निकास वाली हल्की दोमट भूमि भिंडी की जैविक खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। जिसमें कार्बनिक तत्व पर्याप्त मात्रा में और Ph मान 6 से 6.8 होना चाहिए। Ph मान के 6 से कम होने पर मिट्टी के सुधार के लिए चुने का प्रयोग करना चाहिए। भिंडी की खेती करने से पूर्व आपको अपने खेत की मिट्टी की जांच करवा लेना चाहिए यह आपके लिए फायदेमंद साबित होगा।
भिंडी की खेती के लिए किस्मों का चयन
भिंडी की जैविक खेती करने के लिए किसानों का चयन किसानों को अपने क्षेत्र और परिस्थितियों के अनुसार करना चाहिए। जहां तक संभव हो अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म उगायें और जैविक प्रमाणित बीज का इस्तेमाल करें। भिंडी की कुछ प्रमुख उन्नत तथा शंकर किस्में निम्नलिखित प्रकार से है।
किस्मों के प्रकार | किस्मों के नाम |
उन्नत किस्में | हिसार उन्नत, वी आर ओ 6, पूसा ए-4, परभनी क्रांति, पंजाब-7, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, अर्का अभय, एच बी एच और पंजाब-8 प्रमुख है. |
शंकर किस्में | सोनल, सारिका, वर्षा, विजय, नाथ शोभा, सनग्रो-35 इत्यादि प्रमुख है |
नोट: उन्नत किस्मों की तुलना में संकर किस्मों से पैदावार ज्यादा मिलती है.
बीज की मात्र और बीजोपचार
- उन्नत किस्म के लिए भिंडी की जैविक खेती हेतु ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और वर्षा कालीन फसल के लिए 10 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है।
- शंकर किस्म के लिए 5 से 7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज उपयोग में लेना चाहिए।
- बीजोपचार: बीज को बीजामृत या ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर लगाना चाहिए।
भिंडी जैविक खेती की तैयारी और बुवाई
- बसंत कालीन फसल की बुवाई फरवरी से मार्च और वर्षा कालीन फसल मई से सितंबर तक की जाती है।
- खरीफ में पीला शिरा मोजेक रोग लगता है, जिससे फसल को क्षति होती है। बुआई अगेती या पछेती करने से रोग का प्रकोप कम होता है।
- भिंडी की जैविक खेती से अच्छी पैदावार के लिए ग्रीष्मकालीन बुआई के लिए बीज को रात भर फुलाते हैं और फूले हुए बीज को पोटली में रखकर ताजे गोबर के ढेर में दबाकर 2 से 3 दिन रखकर अंकुरण करवा लें तथा अंकुरित बीज की बुवाई करें। खेत में बुवाई के समय नमी का होना आवश्यक है।
- बसंत कालीन भिंडी की जैविक फसल के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखें।
- वर्षा कालीन भिंडी की जैविक फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 50 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 25 सेंटीमीटर रखें।
जैविक खाद
- भिंडी की जैविक खेती से उत्तम पैदावार लेने के लिए खेत की अच्छी तरह जुताई कर क्यारियां बना ले.
- अंतिम जुताई में 150 से 200 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद या 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर केंचुआ खाद दें और साथ ही 5 से 10 क्विंटल करंज खली (पिसा हुआ) मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दे।
- बुवाई के पहले मिट्टी में बायोडायनेमिक खाद ( बी डी 500 व बी डी 501) देना भी लाभदायक होता है।
- सिंचाई और निराई गुड़ाई ग्रीष्मकालीन भिंडी की जैविक खेती में 5 से 6 दिनों पर और वर्षा कालीन फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
- भिंडी की जैविक खेती में ड्रिप विधि से सिंचाई करना लाभकारी होता है, जिस पर सरकारों द्वारा अनुदान भी प्रदान किया जा रहा है।
- भिंडी की जैविक खेती में बुवाई के तुरंत बाद खरपतवार निकल आते हैं, इसलिए अंकुरण से 8 से 10 दिन बाद से निराई गुड़ाई शुरू कर दे।
- ग्रीष्मकालीन फसल में दो बार और खरीफ फसल में तीन बार निराई गुड़ाई की आवश्यकता होती है, अंतिम निराई गुड़ाई के बाद पौधों की जड़ों के पास मिट्टी अवश्य चढ़ा दे।
भिंडी फसल के प्रमुख कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण कैसे करें आइए जाने
कीट नियंत्रण
तना और फल छेदक: यह कीट फलों और तनों में छेद कर देता है, जिससे फल खराब हो जाते हैं और पौधे सूख जाते हैं।
नियंत्रण विधि
- इसके नियंत्रण के लिए फेरोमोन ट्रैप्स ( इविड ल्युर या हेलील्युर) का प्रयोग फूल आते समय करें।
- कुतरने वाले कीट ग्रीष्मकालीन फसल में उगते हुए पौधे को काट देता है, इस किट से बचने के लिए खेत की तैयारी के समय 5 से 10 क्विंटल करंज या नीम की खली प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिला दे।
- खड़ी भिंडी की जैविक फसल में नीम आधारित कीटनाशक का छिड़काव करें।
एफिड:- यह कोमल पत्तियों का रस चूसता है जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती है।
नियंत्रण:- गोमूत्र, नीम या तंबाकू से बनी दवा का छिड़काव करें।
रोग नियंत्रण
पीला शिरा मोजैक- यह सफेद मक्खी किट द्वारा फैलता है. इस रोग से पत्तियां और उनकी शिराएं पीली, चितकाबरी पढ़ने लगती है और फल भी खराब हो जाते हैं।
नियंत्रण
- ग्रसित पौधे को उखाड़ कर नष्ट कर दें.
- रोग रोधी किस्मों जैसे अर्का अभय, वर्षा उपहार वह हिसार उन्नत का चयन करें.
- हॉस्टेल पत्ते से बनी हुई दवा का छिड़काव करें
- बी डी 501 का दो बार छिड़काव करें
- नीम आयल 5 मिलीलीटर प्रति लीटर हिसाब से छिड़काव करें, आवश्यकतानुसार छिड़काव 10 दिन के अंतराल से 4 से 5 बार दोहरावें
भिंडी की तुड़ाई और पैदावार
फलों की तुड़ाई- बॉय के 45 दिन में शुरू हो जाती है. जब फल हरे मुलायम और रेशा रहित हो तब उनकी तुड़ाई कर ले, ग्रीष्मकालीन भिंडी की जैविक फसल में हर तीसरे दिन तुड़ाई करें। समय पर तुड़ाई होने से पैदावार अच्छी मिलती है।
पैदावार- ग्रीष्मकालीन भिंडी की जैविक फसल से 70 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और वर्षा कालीन फसल से 150 से 220 क्विंटल तथा शंकर किस्मों 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है।
निष्कर्ष :
किसान भाइयों उम्मीद करते है की आपको हमारे द्वारा दी गई “भिंडी की जैविक खेती” करने की विधि की यह जानकारी आपके लिए काफी उपयोगी रही होगी। इस ब्लॉग पोस्ट को पढ़ने के बाद उम्मीद करते है की आप भी रासायनिक भिंडी की बजाय अब ऑर्गेनिक तरीके से भिंडी की खेती करना पसंद करेंगे । अगर हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करना है तो , सभी फसलों को अब ऑर्गेनिक तरीके से उगाना चाहिए और जहरीले रासायनिकों से पीछा छुड़ाना ही होगा। धन्यवाद
सोर्स : खेती खजाना
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