नई दिल्ली : मंडियों में आवक घटने के साथ ही गेहूं की कीमतों में तेजी का दौर शुरू उद्योग-व्यापार समीक्षकों ने कहा है कि बेशक केन्द्र सरकार ने चालू सीजन में गेहूं का घरेलू उत्पादन बढ़कर 1127 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने का अनुमान लगाया है। मगर यह वास्तविकता से बहुत दूर है।
एक तो गेहूं की सरकारी खरीद नियत लक्ष्य से काफी पीछे रह गई है और दूसरे प्रमुख उत्पादक राज्यों की महत्वपूर्ण मंडियों में इसकी आवक की गति सुस्त पड़ गई है। उत्तर प्रदेश की हालत तो सबसे ज्यादा खराब है जहां देश का सर्वाधिक गेहूं पैदा होता है। वहां सरकारी खरीद केवल 2 लाख टन पर अटक गई, जबकि मंडियों में आपूर्ति भी तेजी से घटती जा रही है।
यदि यह मान लिया जाए कि वहां से तस्करी के जरिए गेहूं को पहले नेपाल और फिर वहां से कई अन्य देशों को भेजा जा रहा है। तो भी इसकी मात्रा 10-20 लाख टन से ज्यादा नहीं होगी। तो क्या सारा शेष गेहूं उत्पादकों के पास पड़ा हुआ है। क्या छोटे-छोटे किसानों में लम्बे समय तक गेहूं के स्टॉक को अपने पास रोक कर रखने की क्षमता है।
यही स्थिति राजस्थान और बिहार की भी है जहां गेहूं की सीमित सरकारी खरीद हुई है और मंडियों में आवक का अकाल पड़ गया है।
मध्य प्रदेश और गुजरात की मंडियों में गेहूं आपूर्ति की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है। मगर वहां किसान अब सरकारी एजेंसियों के बजाए व्यापारियों-मिलर्स को अपना स्टॉक बेचने में प्राथमिकता दे रहे हैं। क्योंकि वे न्यूतनम समर्थन मूल्य से ऊंचे दाम पर इसकी खरीद कर रहे हैं।
सरकार ने अतिरिक्त बोनसा की घोषण नहीं की तो सरकारी ख़रीद का लक्ष्य जो की 341.50 लाख टन निर्धारित किया गया था पूरा नहीं हो पाएगा । उस समय सरकार ने बड़े गर्व से कहा था कि यह कोई अंतिम लक्ष्य नहीं बल्कि लेकिन परिणाम क्या निकला, यह सबके सामने है। इस बीच रोलर फ्लोर मिलर्स ने सरकार से खुले बाजार बिक्री योजना बाजार में धीरे-धीरे प्रतिस्पर्धा और तदनुरूप गेहूं की कीमत बढ़ती जा रही है।
ऐसी हालत में यदि केन्द्र आरम्भिक योजना है। और क्रय केन्द्रों पर इससे अधिक गेहूं पहुंचने पर उसकी खरीद भी की जाएगी। (ओएमएसएस) को दोबारा चालू करने की मांग शुरू कर दी है। सरकार के पास फिलहाल गेहूं का समुचित स्टॉक मौजूद है लेकिन उसे अक्टूबर-फरवरी के ऑफ़ सीजन के लिए भी इसे बचा कर रखना है। जब आमतौर पर गेहूं का घरेलू बाजार भाव काफी ऊंचा और तेज हो जाता है।
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