Agricultural Commodities News: क्या वायदा कारोबार पर प्रतिबंध से खाद्य महंगाई पर लगाम लगेगी, या यह किसानों और व्यापारियों के लिए नई चुनौतियां खड़ी करेगा? भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने हाल ही में सात प्रमुख कृषि जिंसों पर भविष्य के अनुबंधों (वायदा कारोबार) की रोक को 31 मार्च 2026 तक बढ़ाने का ऐलान किया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब देश में खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतें और महंगाई सरकार के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं। लेकिन इस कदम से तिलहन किसानों और व्यापारियों में निराशा की लहर दौड़ गई है। आइए, इस निर्णय के विभिन्न पहलुओं को समझते हैं और जानते हैं कि इसका असर किन-किन क्षेत्रों पर पड़ सकता है।
वायदा कारोबार का महत्व और उसका कामकाज
वायदा कारोबार एक ऐसा वित्तीय तंत्र है, जिसमें खरीदार और विक्रेता किसी जिंस को भविष्य की एक निश्चित तारीख पर पहले से तय कीमत पर खरीदने या बेचने का समझौता करते हैं। खेती से जुड़ी जिंसों के लिए यह व्यवस्था इसलिए अहम है, क्योंकि यह किसानों को कीमतों के उतार-चढ़ाव से बचाने का सुरक्षा कवच देती है। साथ ही, यह बाजार में पारदर्शिता लाती है और सही मांग-आपूर्ति के आधार पर कीमत तय करने में मदद करती है। मिसाल के तौर पर, अगर कोई किसान अपनी सोयाबीन की फसल को छह महीने बाद बेचना चाहता है, तो वह वायदा बाजार में आज ही उसकी कीमत तय कर सकता है, जिससे अनिश्चितता कम होती है।
SEBI का ताजा फैसला: क्या हुआ और क्यों?
SEBI ने सात कृषि जिंसों – गैर-बासमती चावल, गेहूं, चना, मूंग, सरसों (तेल और खल सहित), सोयाबीन (सोया तेल और अन्य उत्पादों सहित), और क्रूड पाम तेल – पर वायदा कारोबार पर लगी रोक को आगे बढ़ा दिया है। यह प्रतिबंध पहली बार दिसंबर 2021 में लागू हुआ था और तब से इसे कई बार बढ़ाया जा चुका है। ताजा घोषणा के मुताबिक, अब यह निषेध 31 मार्च 2026 तक प्रभावी रहेगा। पहले यह उम्मीद थी कि कुछ जिंसों, खासकर सोयाबीन और सरसों, को इस सूची से बाहर किया जा सकता है, लेकिन SEBI ने सभी सात जिंसों पर रोक बरकरार रखी।
किसानों और व्यापारियों की उम्मीदों पर पानी
इस फैसले से तिलहन उद्योग और किसानों को गहरा झटका लगा है। सोयाबीन और सरसों की कीमतें इस समय न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी नीचे चल रही हैं, जिससे किसानों में नाराजगी है। एक किसान ने अपनी व्यथा साझा करते हुए कहा, “जब से वायदा कारोबार बंद हुआ है, हमें अपनी फसल का सही दाम नहीं मिल रहा। बाजार में अस्थिरता बढ़ गई है, और हमें समझ ही नहीं आता कि फसल कब और किस कीमत पर बेचें।” दूसरी ओर, व्यापारियों का कहना है कि इस प्रतिबंध से बाजार में पारदर्शिता गायब हो गई है। एक व्यापारी संगठन के प्रतिनिधि ने बताया, “हमें लग रहा था कि सोयाबीन और सरसों पर रोक हट सकती है, क्योंकि इनकी कीमतें पहले ही बहुत नीचे हैं। लेकिन अब व्यापार करना और मुश्किल हो गया।”
सरकार का तर्क: महंगाई पर काबू पाना
SEBI का यह कदम सरकार की उस रणनीति का हिस्सा है, जो खाद्य महंगाई, खासकर खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों, को नियंत्रित करने पर केंद्रित है। हाल के वर्षों में, सरसों तेल की कीमतें 150 रुपये प्रति लीटर के आसपास बनी हुई हैं, जबकि सोया तेल और पाम तेल के दाम भी ऊंचे स्तर पर हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के आंकड़े बताते हैं कि खाद्य महंगाई में तेलों की कीमतों का बड़ा योगदान है। सरकार का मानना है कि वायदा कारोबार में सट्टेबाजी की वजह से जिंसों की कीमतें अनावश्यक रूप से बढ़ सकती हैं, जिससे आम लोगों पर बोझ पड़ता है। इसलिए, इस प्रतिबंध को बढ़ाकर महंगाई को काबू में रखने की कोशिश की जा रही है।
क्या यह रणनीति कारगर होगी?
यह सवाल अब भी बहस का विषय है कि क्या वायदा कारोबार पर रोक से सचमुच महंगाई कम होगी। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह बाजार तंत्र कीमतों को स्थिर करने में मदद करता है, क्योंकि यह वास्तविक मांग और आपूर्ति के आधार पर मूल्य तय करता है। मगर इसके उलट, कई लोग मानते हैं कि वायदा बाजार में सट्टेबाजी की अधिकता से कीमतों में अस्थिरता बढ़ती है। सोयाबीन और सरसों के मौजूदा दाम MSP से कम हैं, जो यह दिखाता है कि बाजार में आपूर्ति अधिक है या मांग कम। ऐसे में, अगर वायदा कारोबार फिर से शुरू हो, तो किसानों को बेहतर कीमत मिल सकती है, लेकिन इससे महंगाई बढ़ने का जोखिम भी है। सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह किसानों की आय और उपभोक्ताओं की जेब के बीच संतुलन कैसे बनाए।
ऐतिहासिक संदर्भ और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
भारत में पहले भी कई बार कृषि जिंसों पर वायदा कारोबार पर रोक लगाई गई है, खासकर तब जब महंगाई चरम पर होती है। लेकिन इसका असर हमेशा सकारात्मक नहीं रहा। वैश्विक स्तर पर देखें, तो कुछ देशों में वायदा कारोबार को कीमतों को नियंत्रित करने का एक प्रभावी तरीका माना जाता है, जबकि कुछ जगहों पर इसे अस्थिरता का कारण ठहराया जाता है। मिसाल के तौर पर, अमेरिका जैसे देशों में फ्यूचर्स मार्केट को मजबूत नियमन के साथ चलाया जाता है, ताकि सट्टेबाजी पर लगाम लग सके। भारत में भी इस दिशा में सोचने की जरूरत हो सकती है।
आगे क्या होगा?
SEBI का यह फैसला एक जटिल पहेली का हिस्सा है, जिसमें किसानों, व्यापारियों, उपभोक्ताओं और नीति-निर्माताओं के हित जुड़े हैं। सरकार का लक्ष्य महंगाई को कम करना है, लेकिन किसानों और व्यापारियों की मांग है कि वायदा कारोबार को फिर से शुरू किया जाए। आने वाले समय में यह देखना जरूरी होगा कि क्या यह प्रतिबंध अपने मकसद में कामयाब होता है, या इसके उलट प्रभाव पड़ते हैं। साथ ही, सरकार को किसानों की बेहतरी के लिए दूसरे रास्ते तलाशने होंगे – जैसे कि बाजार में सीधे हस्तक्षेप, भंडारण की बेहतर व्यवस्था, या वैकल्पिक वित्तीय उपाय।