Rupee vs Dollar: रुपया जब डॉलर के आगे घुटने टेकता है, तो सिर्फ़ आयातित iPhone या क्रूड ऑयल ही नहीं, आपके खेतों की खाद भी महंगी हो जाती है। 5 दिसंबर 2025 की ताज़ा रिपोर्ट से पता चलता है कि Rupee Depreciation ने भारत के Fertilizer Sector को एक बड़े संकट की तरफ़ धकेल दिया है। सरकार के Fertilizer Subsidy का बिल बढ़कर 3,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है, लेकिन किसानों को राहत मिलेगी या नहीं, यह सवाल अब भी बना हुआ है।
सब्सिडी बिल क्यों बढ़ रहा है? समझें पूरा गणित
देश में यूरिया और डीएपी की Retail Prices सरकार तय करती है। इसका मतलब साफ है – अगर डॉलर में लागत बढ़ती है, तो कंपनियां इस बोझ को किसानों पर नहीं डाल सकतीं। इसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ता है। जानकारों की मानें तो रुपये में हर 3 रुपये की गिरावट यूरिया के घरेलू उत्पादन की लागत को 700 रुपये प्रति टन तक बढ़ा देती है। आयातित यूरिया तो और महंगा हो जाता है – लगभग 1,200 रुपये प्रति टन का अतिरिक्त बोझ। वहीं, डीएपी पर यह असर 2,100 रुपये प्रति टन तक पहुंच सकता है। अभी डीएपी का आयातित भाव लगभग 730 डॉलर (यानी करीब 65,700 रुपये प्रति टन) है।
आयात के आंकड़े बता रहे हैं चौंकाने वाली कहानी
आंकड़े डरा रहे हैं। अप्रैल से अक्तूबर 2025 के दौरान यूरिया के आयात में पिछले साल की समान अवधि से 137% का उछाल आया है। डीएपी का आयात भी 69% बढ़ा है। NP/NPKS खादों के आयात में 81% की वृद्धि हुई है। ऐसे में जब आयात की मात्रा बढ़ रही है और रुपया कमजोर हो रहा है, तो दोहरा झटका लगता है। सरकार ने पहले ही इस साल के पहले सात महीनों में 1,23,315.24 करोड़ रुपये सब्सिडी पर खर्च कर दिए हैं, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह खर्च 1,02,445.92 करोड़ रुपये था। यानी सिर्फ़ एक साल में 20% से ज़्यादा का इज़ाफ़ा।
घरेलू उत्पादन भी नहीं बचा सकता – क्यों?
सोचिए, अगर देश में बनी चीज़ भी महंगी हो जाए, तो क्या बचेगा? यूरिया के उत्पादन लागत का 85 से 90% हिस्सा आयातित गैस का है, जिसकी कीमत डॉलर में चुकानी पड़ती है। इसलिए रुपया गिरने से घरेलू यूरिया भी महंगा हो जाता है। डीएपी का हाल और भी बुरा है – इसके मुख्य कच्चे माल [Rock Phosphate] और [Phosphoric Acid] पूरी तरह से बाहर से मंगाए जाते हैं। तो चाहे आयात करो या घरेलू उत्पादन, डॉलर का खर्च तो देना ही पड़ेगा।
सरकार के खजाने पर कितना बोझ?
अनुमान बताते हैं कि सिर्फ़ यूरिया (घरेलू और आयातित दोनों) की बढ़ी कीमतों से सब्सिडी में 1,000 से 1,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आ सकता है। ये अनुमान वित्तीय वर्ष 2026 के अंतिम चार महीनों पर आधारित हैं। सरकार ने चालू साल के लिए यूरिया और गैर-यूरिया खाद के लिए कुल 1,68,000 करोड़ रुपये का बजट रखा है, लेकिन अब इसके बढ़ने के आसार नज़र आ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कुल मिलाकर खाद सब्सिडी पर 3,000 करोड़ रुपये तक का असर हो सकता है।

क्या इससे किसानों को कोई नुकसान होगा ?
सीधा जवाब – अभी तक नहीं। किसानों को खाद पुरानी दरों पर ही मिलेगी, लेकिन सरकार के खजाने से ज्यादा पैसा बहेगा। यानी आपके टैक्स का पैसा विदेशी मुद्रा घाटे की भरपाई में जा सकता है। किसान तो राहत महसूस नहीं करेगा, लेकिन देश की आर्थिक सेहत पर इसका असर ज़रूर पड़ेगा। सवाल यह है कि क्या सरकार इस बढ़ते बजट डेफिसिट को कंट्रोल कर पाएगी, या फिर नई योजनाओं पर कैंची चलेगी?












