Food Security Scheme- राजस्थान सरकार के रसद विभाग ने एक ऐसा ‘यू-टर्न’ लिया है, जिसने ना सिर्फ प्रदेश के किसानों को चौंकाया है, बल्कि ब्यूरोक्रेसी के भीतर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। वह अभियान, जो कुछ दिन पहले तक [Rajasthan Ration Card Policy] को लेकर पूरे ज़ोर-शोर से चल रहा था, अब अचानक ‘पार्किंग मोड’ में चला गया है। जिन 2100 किसानों की भरतपुर में लिस्ट तैयार हो चुकी थी, वे अब फिर से ‘विचाराधीन’ श्रेणी में आ गए हैं। सरकारी फाइलें शांत कोनों में पड़ी हैं और किसानों के बीच एक ही सवाल है—अब क्या होगा?
जो प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी, अब अचानक ‘होल्ड’
पिछले कुछ हफ्तों से राजस्थान के रसद विभाग में अजीब सी हलचल थी। अधिकारी दिन-रात एक कर रहे थे। डाटा मिलान, जोत नाप, लिस्टों की छंटनी—सब कुछ तेज़ी से चल रहा था। दरअसल, सरकार ने तय किया था कि 2.47 हेक्टेयर से ज़्यादा जमीन वाले किसानों को [PM Kisan Samman Nidhi] से जोड़कर राशन कार्ड की सुविधा से बाहर किया जाएगा। इसे ‘बड़े किसानों की छंटनी’ नाम दिया गया था। जिम्मेदार अधिकारी लगातार दावा कर रहे थे कि बड़ी जोत वालों को गरीब श्रेणी में रखना अनुचित है। इसलिए सरकारी गेहूं का लाभ सिर्फ छोटे और सीमांत किसानों तक ही सीमित होना चाहिए।
लेकिन फिर अचानक सब कुछ थम सा गया। विभाग ने मौखिक आदेश जारी किया और पूरी प्रक्रिया को ‘होल्ड’ पर लगा दिया। न लिस्टें हटीं, न नाम कटे। सूत्रों का कहना है कि यह फैसला इतनी जल्दी लिया गया कि जिन जिलों में अपात्र किसानों की अंतिम सूची तक बन चुकी थी, वहां अब फाइलें बंद दराजों में रख दी गई हैं। भरतपुर में तो 2100 किसानों की डिटेल्ड लिस्ट पूरी तरह तैयार हो चुकी थी, लेकिन अब वह भी ‘विचाराधीन’ श्रेणी में चली गई है।
किसानों की नाराज़गी बनी ‘गेम-चेंजर’
बड़े किसानों को राशन कार्ड से बाहर करने की खबर जैसे ही गांवों तक पहुंची, नाराज़गी की लहर देखी गई। किसानों ने इसे सरकार की ‘[Anti-Farmer Policy]’ करार देना शुरू कर दिया। खासतौर पर वे किसान, जो पीढ़ियों से ज़मीन जोत रहे हैं, लेकिन अब इस आधार पर सरकारी सुविधाओं से बाहर हो रहे थे।
यह आंच इतनी तेज़ी से सरकार तक पहुंची कि अफसरों को तुरंत निर्देश मिला—फिलहाल किसी भी किसान को राशन से बाहर नहीं किया जाए। यानी जो प्रक्रिया [Data Verification] के नाम पर पूरे प्रदेश में चल रही थी, वह अब ‘पार्किंग मोड’ में आ गई। कई जिलों में तो निरीक्षण भी पूरे हो चुके थे, लेकिन रिपोर्ट्स को अब ‘पुनर्विचार’ के लिए वापस बुलाया गया है।
भरतपुर मॉडल: जहां सबसे आगे थी तैयारी
भरतपुर जिला इस अभियान में सबसे आगे था। यहां तक कि बड़े किसानों की जिलेवार लिस्ट भी तैयार हो चुकी थी। लुक देखिए:
जिले में बड़े किसानों का रिकॉर्ड
- उच्चैन – 217
- नदबई – 167
- बयाना – 474
- भरतपुर – 102
- भुसावर – 241
- रूपवास – 262
- वैर – 228
- सेवर – 422
कुल मिलाकर 2100 से ज़्यादा किसानों को इस लिस्ट में ‘अपात्र’ घोषित किया जा चुका था। लेकिन अब इन सभी नामों पर विराम लग गया है। जिला रसद अधिकारी पवन अग्रवाल का कहना है, “पहले पीएम सम्मान निधि में निर्धारित जमीन से ज़्यादा जमीन वाले किसानों की छंटनी के निर्देश थे, लेकिन अब यह प्रक्रिया होल्ड कर दी गई है। आगामी आदेशों तक यह स्थगित ही रहेगी।”
चुनावी विचार या पुनर्विचार? सवाल उठ रहे हैं
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिरकार यह फैसला लिया क्यों गया? विभाग के भीतर इसे ‘यू-टर्न’ कहा जा रहा है, जबकि बाहर के लोग इसे ‘[Election Strategy]’ से जोड़कर देख रहे हैं। किसान इसे ‘चुनावी विचार’ मान रहे हैं, क्योंकि राजनीतिक माहौल में बड़े किसानों की नाराज़गी भारी पड़ सकती है। वहीं, अधिकारी इसे ‘पुनर्विचार’ का नाम दे रहे हैं।
लेकिन एक बात तय है कि सरकार की राय बदल गई है। जमीन वही है, किसान वही हैं, लेकिन अब बड़े किसानों की सांसें सामान्य हुई हैं। वहीं, छोटे किसानों के बीच असंतोष बढ़ रहा है। उनका कहना है, “अगर बड़े किसानों को बाहर नहीं करना था, तो इतनी भागदौड़ और फाइलों का व्यायाम क्यों कराया गया?”












