भारत के किसानों के लिए खाद (Fertilizer) क्या है, वही किसानों के लिए दिल की धड़कन है। लेकिन अब एक बड़ी चुनौती सामने खड़ी है – रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिक एसिड जैसे कच्चे माल की किल्लत। इसलिए देश की सबसे बड़ी खाद निर्माता संस्था IFFCO ने विदेशों में नए कारखाने लगाने का बड़ा फैसला किया है। ये कदम सिर्फ खाद की कमी दूर करने के लिए नहीं, बल्कि Global Supply Chain में भारत की मजबूती बनाने के लिए भी है।
क्यों विदेशों में कारखाने लगाना जरूरी हो गया?
आज किसानों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि अच्छी गुणवत्ता वाला कच्चा माल मिलना मुश्किल हो गया है। कभी कीमतें आसमान छूती हैं, तो कभी माल आने में देरी होती है। दुनिया में जारी विवादों और तनाव की वजह से रॉक फॉस्फेट की कीमतें बढ़ गई हैं। कई देशों ने इसके निर्यात पर रोक लगा दी है। भारत में तो रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिक एसिड का उत्पादन होता ही नहीं, इसलिए सब कुछ बाहर से मंगाना पड़ता है। हर साल डीएपी की 10-11 लाख टन जरूरत में से आधा हिस्सा आयात पर निर्भर है। ऐसे में IFFCO के MD के. जे. पटेल का कहना है कि जहां कच्चा माल ज्यादा मिलता है, वहीं कारखाने लगाना ही एक बेहतर समाधान है।
तीन देश, तीन रणनीति: श्रीलंका, जॉर्डन और सेनेगल
IFFCO ने तीन अहम देशों को अपनी योजना का केंद्र बनाया है।
श्रीलंका में बहुत अच्छा रॉक फॉस्फेट मिलता है। इससे डीएपी और फॉस्फोरिक एसिड बनाने में आसानी होती है। इसी वजह से श्रीलंका को नए कारखाने के लिए एक बेहतर विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।
जॉर्डन में IFFCO का पहले से ही एक बड़ा कारखाना है। अब यहां खाद बनाने की क्षमता को 5 लाख टन से दोगुना करके 10 लाख टन करने की योजना है। इससे भारत को और ज्यादा खाद मिल पाएगी और मांग आसानी से पूरी हो सकेगी।
सेनेगल में संस्था की थोड़ी हिस्सेदारी पहले से है। अब या तो ज्यादा हिस्सेदारी खरीदने या फिर नया कारखाना लगाने की तैयारी है। सेनेगल भी रॉक फॉस्फेट से भरपूर है, इसलिए भारत के लिए यह एक अच्छा विकल्प बन सकता है।
IFFCO का सालाना प्रदर्शन
IFFCO ने वित्त वर्ष 2025 में 41,244 करोड़ रुपये की कमाई की और 2,823 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। इस साल संस्था ने 9.31 लाख टन खाद बनाई और 11.38 लाख टन बेची। इसके अलावा 45.6 मिलियन बोतल नैनो खाद बनाई गई, जिनमें से 36.5 मिलियन बोतलें किसानों को बेची गईं। ये आंकड़े बताते हैं कि IFFCO का नेटवर्क कितना मजबूत है, और विदेशी कारखाने इसे और मजबूत करेंगे।
किसानों के लिए इसका मतलब क्या है?
अगर ये योजना सही से काम करती है, तो भारत के किसानों को समय पर, सस्ती और अच्छी गुणवत्ता वाली खाद मिल सकेगी। जब [fertilizer import] की कीमतें कम होंगी, तो सब्सिडी का बोझ भी कम होगा। खेती बेहतर होगी और किसानों को कम परेशानी होगी। लेकिन सवाल ये है कि विदेशी कारखानों से खाद का ट्रांसपोर्टेशन कितना सस्ता होगा? क्या समय पर माल मिल पाएगा? ये वो सवाल हैं जिनका जवाब आने वाले समय में मिलेगा।
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