India Rice Export Safe- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारतीय बासमती चावल पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी पर हरियाणा के प्रमुख चावल निर्यातक अमरजीत छाबड़ा ने साफ कहा है – इससे भारत को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। दरअसल, भारत का बासमती निर्यात इतना मजबूत है कि अमेरिका की बाजार में झटका लगने से भारतीय किसानों, मिलर्स और एक्सपोर्टर्स को नुकसान नगण्य है।
3% निर्यात पर 100% धमकी – बेअसर
भारत हर साल विदेशों को लगभग 60 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल निर्यात करता है। इसमें से सिर्फ 1.5 लाख मीट्रिक टन ही अमेरिका जाता है – यानी कुल निर्यात का मात्र 3 प्रतिशत। इस छोटी-सी हिस्सेदारी पर टैरिफ बढ़ने से भारतीय बाजार पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। “यह धमकी खोखली है,” छाबड़ा ने कहा।
असली बाजार तो कहीं और है: 45 लाख मीट्रिक टन मध्य पूर्व और खाड़ी देशों में जाता है, जबकि 15 लाख मीट्रिक टन यूरोप, अफ्रीका व अन्य देशों को निर्यात होता है। ये बाजार भारतीय बासमती पर निर्भर हैं और ऐसे रहेंगे।
अमेरिकी उपभोक्ताओं को होगा असली नुकसान
छाबड़ा ने साफ किया कि टैरिफ का सीधा प्रभाव अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। चावल कोई विलासिता का उत्पाद नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जरूरी चीज है। भारतीय बासमती की वहां मांग स्थिर है, इसलिए महंगाई के बावजूद खरीदारी जारी रहेगी।
अगर सीधा आयात महंगा होता है तो चावल कनाडा या अन्य देशों के माध्यम से अमेरिका पहुंचेगा। इसका मतलब साफ है – भारत को रोयल्टी मिलती रहेगी, अमेरिका को ग्राहक और अपने ही टैरिफ के चलते दाम चुकाने पड़ेंगे।
बासमती की दमदार पहचान को कोई नहीं हरा सकता
भारतीय बासमती की गुणवत्ता, सुगंध और वैश्विक पहचान ऐसी है कि इसके विकल्प सीमित हैं। छाबड़ा ने कहा, “किसी भी प्रकार की टैरिफ़ वृद्धि से भारतीय किसानों, मिलर्स और निर्यातकों को नुकसान की आशंका नगण्य है.” इसलिए इस तरह की बयानबाजी या धमकियों से भारतीय चावल निर्यात प्रभावित नहीं होगा।
उन्होंने आगे कहा, “अमेरिका को ही टैरिज़ जैसे तुगलकी फरमान का खामियाजा स्वयं भुगतना होगा.” भारत के बासमती चावलों की विदेशों में तूती बोलती है और हमेशा बोलती रहेगी।
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