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कपास पर 11% ड्यूटी हटाने की मांग: भारतीय टेक्सटाइल का भविष्य दांव पर

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अगर आपने हाल ही में कपड़े या होम टेक्सटाइल्स खरीदे हैं, तो आपने महसूस किया होगा कि कीमतों में एक अजीब सी तेजी आई है। इसकी वजह सिर्फ महंगाई नहीं, बल्कि भारत के टेक्सटाइल सेक्टर के पीछे छिपे एक बड़े संकट से जुड़ा है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया [cotton imports] पर लगी 11 परसेंट कस्टम ड्यूटी हटाने के लिए अब गुहार लगा रही है, और समय बहुत कम बचा है – महज 21 दिन।

भारतीय टेक्सटाइल का ‘सबसे बुरा दौर’

CAI के प्रेसिडेंट विनय एन कोटक ने साफ शब्दों में कहा है कि भारतीय टेक्सटाइल इंडस्ट्री अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यह कोटक की निजी राय नहीं है, बल्कि उस हकीकत का आइना है जो अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी की अनिश्चितता और यूरोप में गहराती मंदी से पैदा हुआ है।

जब दुनिया के दो सबसे बड़े खरीदार बाजार अपनी समस्याओं में उलझे हों, तो भारत जैसे निर्यात निर्भर देश के उद्योग पर इसका सीधा असर पड़ना लाजमी है। लेकिन बाहरी चुनौतियां तो पहले से ही थीं, अब आंतरिक संरचनात्मक कमजोरियां भी सामने आ रही हैं।

MSP और महंगाई का दुष्चक्र

कोटक ने जो सबसे अहम बात उठाई, वह है भारतीय कपास की बढ़ती लागत। कम घरेलू उत्पादकता और ज्यादा MSP (Minimum Support Price) ने मिलकर एक ऐसा दुष्चक्र बनाया है जिसमें हमारी कपास अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वाभाविक रूप से महंगी हो गई है।

अब इस महंगाई के ऊपर 11 परसेंट इंपोर्ट ड्यूटी चढ़ाई जा रही है। यह सिर्फ कीमतों को बिगाड़ने वाला कदम नहीं है, बल्कि पूरे [Indian textile industry] की जानलेवा मुश्किलों को और बढ़ाने वाला फैसला है। जब आपका बेसिक रॉ मटीरियल ही महंगा हो, तो फाइनल प्रोडक्ट कैसे प्रतिस्पर्धी रहेगा?

क्वालिटी संकट: बेमौसम बारिश का खामियाजा

इस फसल सीजन में जो बेमौसम बारिश हुई, उसने भारतीय कॉटन की क्वालिटी को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। कोटक का कहना है कि अब टेक्सटाइल मिलों को खरीदारों की क्वालिटी डिमांड पूरी करने के लिए मजबूरन कॉटन इंपोर्ट करना होगा।

लेकिन अगर 11 परसेंट [custom duty] हटाई नहीं गई, तो यही महंगा आयात भारतीय टेक्सटाइल प्रोडक्ट्स को ग्लोबल मार्केट में अप्रतिस्पर्धी बना देगा। खरीदार तुरंत विकल्प तलाशेंगे – वियतनाम, बांग्लादेश, पाकिस्तान और दूसरे मार्केट्स में शिफ्ट हो जाएंगे। यह कोई अनुमान नहीं, बल्कि ट्रेड का कठोर सच है।

$100 अरब का सपना या बाजार खोने का डर?

सरकार ने 2030 तक टेक्सटाइल [export target] के तौर पर 100 अरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य रखा है। कोटक का तर्क है कि ड्यूटी हटाने से इस लक्ष्य तक पहुंचना संभव हो सकेगा, क्योंकि इंडियन टेक्सटाइल सेक्टर वर्ल्ड ट्रेड में अपना हिस्सा बढ़ा सकेगा।

लेकिन इससे बड़ी चिंता तत्काल है। अगर अभी सपोर्ट नहीं दिया गया, तो बेरोजगारी, लोन डिफॉल्ट्स और पूरी टेक्सटाइल [value chain] में डेब्ट का बोझ तुरंत बढ़ सकता है। यानी नुकसान सिर्फ मिल मालिकों का नहीं, बल्कि मजदूरों, बैंकों और अंततः अर्थव्यवस्था का होगा।

COVID की विरासत: 11% ड्यूटी का जन्म

दिलचस्प बात यह है कि यह 11 परसेंट ड्यूटी कोरोना महामारी के ‘खास हालात’ में लगाई गई थी। उससे पहले कॉटन पर कोई इंपोर्ट ड्यूटी नहीं थी, और कोटक जोर देकर कहते हैं कि इसका किसानों पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा।

किसानों को MSP के जरिए पहले से ही सुरक्षा मिली हुई है। अब वक्त आ गया है कि उसी तर्ज पर टेक्सटाइल इंडस्ट्री को भी सुरक्षा दी जाए, ताकि उसे कॉम्पिटिटिव रॉ मटीरियल मिल सके। यह मांग सिर्फ इंडस्ट्री के लिए नहीं, बल्कि पूरे वैल्यू चेन को बचाने के लिए है।

50 लाख गांठों का रिकॉर्ड आयात

CAI के नए सप्लाई-डिमांड अनुमान चौंकाने वाले हैं। 2025-26 सीजन में भारतीय [cotton imports] 170 kg की 50 लाख गांठों तक पहुंच सकता है – यह एक रिकॉर्ड होगा। पिछले साल यह आंकड़ा 41 लाख गांठों का था।

मौजूदा सीजन में देशीय उत्पादन 309.5 लाख गांठों का अनुमान है, जबकि घरेलू खपत 295 लाख गांठों की होने की उम्मीद है। यानी उत्पादन खपत से ज्यादा है, फिर भी हमें रिकॉर्ड आयात करना होगा। इस विरोधाभास की दो वजहें हैं – बदतर क्वालिटी और कॉस्ट कॉम्पिटिटिवनेस।

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नमस्ते! मैं जगत पाल ई-मंडी रेट्स का संस्थापक, बीते 7 साल से पत्रकारिता कर रहा हूं। मुझे खेती-किसानी, मंडी भाव की जानकारी में महारथ हासिल है । यह देश का पहला डिजिटल कृषि न्यूज़ प्लेटफॉर्म है, जो बीते 6 सालों से निरन्तर किसानों के हितों में कार्य कर रहा है। किसान साथियों ताजा खबरों के लिए आप हमारे साथ जुड़े रहिए। धन्यवाद

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